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PM और CMs को पद से हटाने वाले बिलों पर लोकसभा में जोरदार हंगामा

PM और CMs को पद से हटाने वाला बिल

वॉइस वोट के बाद बिलों को संयुक्त समिति को भेजा गया; केंद्र का कहना है कि इनसे राजनीति में नैतिकता लौटेगी; अमित शाह और के.सी. वेणुगोपाल में शाह की 2010 की गिरफ्तारी को लेकर तीखी बहस हुई।

PM और CMs

अमित शाह की 2010 की गिरफ्तारी को लेकर तीखी बहस

बुधवार को लोकसभा में विपक्ष और सत्तापक्ष के सांसदों के बीच तीखी नोकझोंक हुई। सरकार ने दावा किया कि राजनीति में नैतिकता लाने के लिए तीन नए बिल लाए गए हैं, जिनके ज़रिए गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ़्तार और 30 दिन से ज़्यादा बिना ज़मानत जेल में रहने वाले जनप्रतिनिधियों को पद से हटाया जा सकेगा। जैसे ही ये बिल पेश किए गए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल के बीच शाह की 2010 की गिरफ्तारी को लेकर तेज़ बहस छिड़ गई

बिल पेश किए जाने के दौरान तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसदों ने विरोध तेज़ करते हुए प्रस्तावित विधेयक की प्रतियां फाड़ दीं और अमित शाह की सीट के सामने ही विरोध किया। इस दौरान विपक्ष और सत्तापक्ष के सांसदों के बीच हल्की धक्का-मुक्की भी हुई। बीजेपी सांसदों में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और रवनीत सिंह बिट्टू आगे आए और अमित शाह को घेरकर सुरक्षा दी। वहीं टीएमसी ने आरोप लगाया कि मंत्रियों ने महिला सांसदों को धक्का दिया और जबरदस्ती की।

जैसे ही गृह मंत्री ने सदन में तीनों बिल पेश किए, विपक्षी सांसदों ने जोरदार नारेबाज़ी शुरू कर दी और इन्हें ‘असंवैधानिक और संघीय ढांचे के खिलाफ’ बताया। बाद में वॉइस वोट से प्रस्ताव पारित हुआ कि इन बिलों को संसद की संयुक्त समिति को भेजा जाएगा। इस समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल होंगे। समिति को निर्देश दिया गया है कि वह अपनी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र तक पेश करे, जो आमतौर पर नवंबर के तीसरे सप्ताह में बुलाया जाता है।

तीन बिलों में शामिल हैं

‘गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज़ (संशोधन) बिल, 2025’, ‘संविधान (130वां संशोधन) बिल, 2025’ और ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल, 2025’। इनका प्रावधान है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री या राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्री गंभीर अपराध (जिसकी सज़ा पाँच साल या उससे अधिक हो) के आरोप में गिरफ़्तार होकर लगातार 30 दिन तक बिना ज़मानत जेल में रहता है, तो 31वें दिन उसे पद से हटा दिया जाएगा।

उदाहरण के लिए, ऐसी स्थिति में अगर प्रधानमंत्री खुद इस्तीफ़ा नहीं देते, तो राष्ट्रपति उन्हें पद से हटा सकते हैं। इसी तरह किसी राज्य के मुख्यमंत्री को राज्यपाल पद से हटा सकेंगे।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के संयुक्त उम्मीदवार के सम्मान समारोह में कहा कि ये बिल देश को ‘मध्यकालीन दौर’ में ले जाएंगे, जब राजा अपनी मर्ज़ी से किसी को भी हटा सकता था। उन्होंने समझाया कि इस प्रस्तावित क़ानून का इस्तेमाल कैसे हो सकता है। राहुल गांधी ने कहा, ‘वो ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) से कहेगा कि केस लगाओ और कोई लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया प्रतिनिधि 30 दिन में ही पद से बाहर कर दिया जाएगा।

जैसे ही दोपहर 2 बजे लोकसभा में ये बिल पेश किए गए, सदन में ज़बरदस्त हंगामा शुरू हो गया। विपक्षी सांसद नारे लगाते हुए वेल में आ गए। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के सांसद के.सी. वेणुगोपाल तथा मनीष तिवारी समेत कई नेताओं ने इन बिलों का विरोध किया। उनका कहना था कि ये बिल संविधान और संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ हैं।

AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने चेतावनी

भारतीय संविधान में संशोधन कर देश को पुलिस राज्य में बदला जा रहा है।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, ‘यह बिल आपराधिक न्याय व्यवस्था की मूल अवधारणा के खिलाफ है और संसदीय लोकतंत्र को कमजोर करता है। यह बिल राजनीतिक दुरुपयोग का रास्ता खोल देगा और सभी संवैधानिक सुरक्षा उपायों को खत्म कर देगा।’

आरएसपी सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन ने सरकार पर ‘बिलों को जल्दबाज़ी में लाने’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘ये बिल सदन की प्रक्रियाओं के अनुसार पेश नहीं किए जा रहे हैं… इन्हें अभी तक सांसदों के बीच प्रसारित भी नहीं किया गया है।

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